श्री कृष्ण चन्द्र कृपालु भजमन, नन्द नन्दन सुन्दरम्।
अशरण शरण भव भय हरण, आनन्द घन राधा वरम्॥
मुख चन्द्र द्विति नख चन्द्र द्विति, पुष्पित निकुंजविहारिणम्॥
वन माल ललित कपोल मृदु, अधरन मधुर मुरली धरम्॥
ललितादि सखी जिन सेवहि, करि चवर छत्र उपासनम्॥
॥ हरि: ॐ तत् सत् ॥