॥ दोहा ॥
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥
॥ चौपाई ॥
बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम।
अरुण अधर जनु बिम्बफल, नयन कमल अभिराम॥
पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पीताम्बर शुभ साज।
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥
॥ चौपाई ॥
जय यदुनंदन जय जगवंदन, जय वसुदेव देवकी नन्दन॥ (१)
जय नट-नागर नाग नथइया, कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया॥ (३)
वंशी मधुर अधर धरि टेरौ, होवे पूर्ण विनय यह मेरौ॥ (५)
गोल कपोल चिबुक अरुणारे, मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥ (७)
कुंडल श्रवण पीत पट आछे, कटि किंकिणी काछनी काछे॥ (९)
मस्तक तिलक अलक घुँघराले, आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥ (११)
मधुवन जलत अगिन जब ज्वाला, भई शीतल लखतहिं नंदलाला॥ (१३)
लगत लगत व्रज चहन बहायो, गोवर्धन नख धारि बचायो॥ (१५)
दुष्ट कंस अति उधम मचायो, कोटि कमल जब फूल मंगायो॥ (१७)
करि गोपिन संग रास विलासा, सबकी पूरण करी अभिलाषा॥ (१९)
माता-पिता की बन्दि छुड़ाई, उग्रसेन कहँ राज दिलाई॥ (२१)
भौमासुर मुर दैत्य संहारी, लाये षट दश सहस कुमारी॥ (२३)
असुर बकासुर आदिक मार्यो, भक्तन के तब कष्ट निवार्यो॥ (२५)
प्रेम के साग विदुर घर माँगे, दुर्योधन के मेवा त्यागे॥ (२७)
भारत के पारथ रथ हाँके, लिये चक्र कर नहिं बल थाके॥ (२९)
मीरा थी ऐसी मतवाली, विष पी गई बजाकर ताली॥ (३१)
निज माया तुम विधिहिं दिखायो, उर ते संशय सकल मिटायो॥ (३३)
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई, दीनानाथ लाज अब जाई॥ (३५)
अस अनाथ के नाथ कन्हैया, डूबत भंवर बचावत नइया॥ (३७)
नाथ सकल मम कुमति निवारो, क्षमहु बेगि अपराध हमारो॥ (३९)
॥ दोहा ॥
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥
यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि॥
॥ हरि: ॐ तत् सत् ॥